Monday, June 7, 2010

तुगलक मेरी नज़रों से

तुगलक का जन्म : Summer of 2007, जब Economy down थी | Manish के पास काफी खाली वक्त हुआ करता था | काफी दिनों से गौर कर रही थी, कोई Script पढ़े जा रहे थे | फिर एक दिन जनाब ने अपने खाली दिमाग में जगी हलचल को उगल ही दिया , " यह तो बड़ा ही दिलचस्प नाटक है , मैं इसे Direct करना चाहता हूँ |" "Are you crazy?" ठीक यही अलफ़ाज थे मेरे | मैंने सोचा यह भूत भी उतर जाएगा कुछ दिनों में | फिर Cricket world cup, India trip और कुछ नाकाम house projects और मैंने सोचा भूत उतर गया | पर ...

Director का जन्म : नाटक में official पंडित का रोल तो कई बार अदा किया ही था ?मैंने पूछा ,"तुम्हे ये direction की क्या सूझी?" जबाब मिला "जब acting करते हैं तब मन में ख्याल आता है कि अगर मैं इस scene ko direct करता तो , कुछ तब्दीली करके इसका रुख बदल देता , वगैरह वगैरह

शानदार सफ़र की शुरूआत : आखिर वह दिन आ ही गया | Theater भी book हो गया |Best Producer एक साल पहले ही वादा कर चुके थे | सारे बेहतरीन Actors भी मिल गए | नाटक खानदान में कई अज़ीज़ सदस्य शामिल हुए | और तो और Manish की consulting job में traveling भी अब दम तोड रही थी जिसकी जगह conference calls ने ले ली थी | वो कहते है ना कि "जब हम किसी चीज को दिल से चाहते है तो सारी कायनात हमारा साथ देती है उसे पाने के लिए |"


अब दिल्ली दूर नहीं : जब सर पर कफ़न बांध ही लिया था तो फिर क्या था | cast aur production के तीस लोग, और, नाटक के रास्ते में आने वाली पचास रुकावटें, उन सबका सबने साथ में डटकर मुकाबला किया | गिरीश कर्नाड के लिखे उन पन्नों को आखिर एक ख़ूबसूरत अंजाम दे ही दिया |

बस चंद दिनों , चंद लम्हों में यह सफ़र एक हसीन यादगार बनकर रह जाएगा कि एक जंग उस तुगलक ने लड़ी थी और एक इस तुगलक ने | उसने अपनी आवाम को हिला कर रख दिया था, गोया कुछ ऐसा ही जूनून इधर भी है |

7 comments:

  1. -Aur saath nibhaya Director ki Dharampatni ne jinke haath ka khana kha ke hi Actors ke gale se awaaz nikalti hai. Rehearsal pe chahe Director sahib pahunch payein ya nahin par khana zaroor pahunchega :)

    Thanks a bunch for doing this :)

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  2. Naatak should thank you for letting Manish do his thing! This could be a start of a string of hits.

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  3. Thank you for this insight into the director sahib's mind...aap ke vade, idli, pasta aur veggie wraps ko to hum dil se chahte hain! Isiliye shaayad saari kaynaat (ya aapki mahnat) unhe hum tak hamesha pahucha dete hain! Thank you Director Begum Saahiba!

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  4. "अब दिल्ली दूर नहीं" या "अब दौलताबाद दूर नहीं"? I am not sure with this Tughlaq dude. But Sonal, I am so impressed with this writing style of yours......where were you hiding. Behind that "utlimate chef" was hiding a "very cool writer". BTW, in the annual board of director's meeting of NAATAK last night, we unanimously decided that "भले निर्देशक कोइ भी हो, भविष्य में खाना आपके हाथ का ही आयेगा. आप बिलकुल भी नहीं झिझकें, हमने बहुत सोच समझ के यह निर्णय लिया है और हमें कोइ तकलीफ नहीं होगी".

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  5. Wow!....I didn't know that my sis can become so creative....I was still thinking that I'm the Best but above post shows that you're my elder Sis....

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  6. सोनल,
    तुम्हारा नाटक के बारे में लिखा अनुभव amazing है . बहुत ही दिलचस्प ढंग से लिखा है. मज़ा आ गया. तुम्हे और मनीष को बहुत सा credit.
    Tughlaq के लिए आप सभी को ढेर सी शुभकामनाएं .

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  7. Dear Sonal - You represent the never forgotten, but always missed entities of any successful production - the family of the actors,directors and producers. You deserve every bit of the applause. Best wishes to Manish for the opening night. Congratulations again.

    -Rajat.

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